Thursday, November 26, 2009

पचमढ़ी यात्रा




एक दिन शैलेश दुबे का फ़ोन आया मौसम बड़ा सुहाना हे पचमढ़ी चले! मैं सितम्बर से जाने की सोच रहा था लेकिन संयोग नहीं बन रहा था। सोचा चलो हो आते हे। कैमरा उठाया कुछ कपड़े बैग में रखे और जबलपुर में शैलेश से मिले। ५ घंटे की कार यात्रा ने हमें पचमढ़ी पहुंचा दिया। रास्ते में फोटो खींचने के लिए ज्यादा कुछ नहीं था लेकिन Combine Harvester ने वर्षों की मुराद पूरी कर दी। Agency कई सालो से फोटो मांग रही थी और उस समय मुझे फुर्सत नहीं होती थी। बढ़िया फोटो मिली और Agency ने भी तुरंत स्वीकार कर ली। रास्ते भर Lantaana की झाड़िया दिखती रही लेकिन उन पर शायद ही कोई तितली बैठी दिखी हो। मैं समझता हूँ की यह pesticides के अधिक उपयोग के कारण हे। पिपरिया पहुँचते पहुँचते जोर की भूख लग आई थी। शैलेश ने ढाबा ढूंढना शुरू किया तो हमारी खोज मटकुली में आकर ख़त्म हुई। घर से बाहर निकलने पर कुछ लोगो मांसाहारी खाने का शौक होता हे शैलेश उनमे से एक हे। खाना खाने बाद जब उन्होंने ढाबे वाले को यह कहा की मुर्गी की जान गई और खाने वाले को मजा नहीं आया ऐसा काम मत किया करो तो उसका जवाब था आप ही हे जिन्हें मजा नहीं आया बाकी तो किसी ने कोई शिकायत नहीं की। क्या करते पैसे दिए और चल दिए।


पचमढ़ी पहुंचे तो ठंडक हो चली थी।


मध्य प्रदेश में पचमढ़ी एक ऐसा स्थान हे जहाँ पर की ९० प्रतिशत से अधिक रहवासी पर्यटन पर निर्भर हे। इस गाँव में अब २०० से ज्यादा जिप्सी हे और ५० से ज्यादा होटल। आदमी तो आदमी अब वहां जानवर भी पर्यटकों की ओर देखने लगे हे। महादेव पर बंदरो ने मेरे कैमरा को खाने का सामान समझा और मुझ पर दौड़ पड़े वह तो गनीमत रही की स्थानीय दुकानदार लड़के दौड़ पड़े वरना मुसीबत हो जाती। महादेव के रास्ते भर बन्दर सड़क किनारे बैठे मिलते हे क्योंकि पर्यटक उन्हें खाने के लिए कुछ न कुछ डालते रहते हे और वह बाद में इसे अधिकार पूर्वक मांगने लगते हे। एक ग़लत आदत जिसका की नुकसान दूसरो को उठाना पड़ता हे।


पचमढ़ी में एक बोर्ड लगा हे जो की पचमढ़ी के होटल association ने लगाया हे। इसे पढकर पचमढ़ी की होटल की व्यवस्था के बारे में पता चलता हे। पर्यटकों को सावधान करता हुआ यह बोर्ड बताता हे की यह समस्या कितनी विकराल हो चली हे। लपका एक बहुत ही प्रचलित शब्द हे आगरा के लिए लेकिन उसकी परिभाषा यहीं पढने को मिली।

पचमढ़ी शीताफल के भाव जगह के अनुसार बदलते हे। महादेव में महंगे तो रास्ते में सस्ते और पचमढ़ी में तो और भी ज्यादा महंगे।

पचमढ़ी में अब सड़क पर चलना मुश्किल होता जा रहा हे। बाज़ार में गाड़ियों की वजह से जगह नहीं बचती। मेरा ख्याल हे की एक समय सीमा के अन्दर पचमढ़ी बाज़ार में गाड़ियों का प्रवेश प्रतिबंधित कर देना चाहिए और कुछ रास्तो पर एकमार्गीय व्यवस्था कर देनी चाहिए। यह सही हे की अब पर्यटक भी पचमढ़ी क्या हे और उसका किस प्रकार भ्रमण हेतु उपयोग किया जावे यह नहीं जानते। सूर्यास्त देखने की होड़ में मची भीड़ को उस जगह की सुन्दरता से कोई वास्ता नहीं था। पचमढ़ी दिन पर दिन गन्दी होती जा रही हे polythene और गुटके के pouch हर जगह पड़े थे। थोड़े बहुत भी नही लेकिन इतने की आसानी से इस समस्या को हल करने का कारण ख़ुद बता रहे थे। लेकिन इस सबके बाद पचमढ़ी में भीड़ से दूर एकांत जगह ढूँढने में कोई परेशानी अब भी नही होती। कई ऐसे स्थान हे जहाँ पर की पर्यटक जाना पसंद नहीं करते या जाते भी हे तो ज्यादा देर नहीं ठहरते।

पचमढ़ी अब भी सुहानी हे। जब भी मौका लगे तब हो आओ.