Thursday, July 30, 2009

क्या कमरे में साँप है?

तारीख तो अब मुझे याद नहीं लेकिन यह जरूर याद हे की वह dec १९८० का महीना था और मैं लाग हट के एक नम्बर कमरे में सो रहा था। रात में किसी समय मेरी नींद खुली तो तो मुझे ऐसा लगा जैसे की मेरे कमरे में कहीं साँप हे और मैं उसकी साँस लेने की आवाज साफ़ साफ़ सुन रहा हूँ। यह साँप कहाँ से आया यह बात मेरे दिमाग में नहीं आई क्यों की लाग हट के उस कमरे में चूहे तो हमेशा ही धमा चोकडी मचाते रहते थे। उसके साँस लेने की आवाज से मुझे लगा की यह साँप ५-६ फ़ुट लंबा तो होगा ही। अब मुझे डर लगने लगा की भगवान् जाने यह कहाँ हे? बड़े डरते डरते मैंने अपने हाथ को रजाई में अन्दर ही अन्दर सरकाना शुरू किया। मेरे सिरहाने टेबल पर टॉर्च रखी हे। वही मेरा सबसे बड़ा अस्त्र हे इस समस्या से छुटकारा पाने का।उस सर्दी में डर के मारे मेरा शरीर पसीने में तर बतर हुआ जा रहा था। खैर जैसे तैसे मेरा हाथ टॉर्च तक पहुंचा। सबसे पहले मैंने बिना हिले डुले टॉर्च की रौशनी को अपने बिस्तर पर डाला ताकि आश्वस्त हो सकूँ की साँप बिस्तर पर नहीं हे। फ़िर मेने खड़े होकर रजाई को झटकारा, इसमे भी कुछ नहीं था। अब मैंने अपने पलंग के नीचे चेक किया। वहाँ भी कुछ नहीं था। धीरे धीरे मैंने पूरा कमरा चेक कर लिया लेकिन मिला कुछ भी नहीं परन्तु साँस लेने की आवाज अभी भी आ रही थी। टॉर्च बंद कर के मैं कमरे के बीचोबीच खडा हो गया यह जानने के लिए की अंततः यह आवाज आ किस दिशा से रही हे?
मुझे लगा की यह मैदान की और खुलने वाली खिड़की से आ रही हे। सोचा की चलो जाने दो लेकिन जिज्ञासा ने ऐसा करने नहीं दिया। खिड़की के पास ही यदि साँप हो तो ? इस डर से मैंने एक हाथ में तकिया पकडा और एक हाथ से खिड़की खोली। पहले एक पल्ला फ़िर दूसरा पल्ला लेकिन यहाँ भी कुछ नहीं। मैं अभी भी साँस लेने की आवाज सुन रहा हूँ। मैंने टॉर्च वहीं खिड़की पर रख, दोनों हाथ के बीच ठोडी और कोहनी खिड़की पर रख सोचने लगा की आख़िर माजरा क्या हे। कुछ देर ऐसे ही खडा रहा। अचानक मेरी नज़र खिड़की के नीचे पड़ी तो देखता क्या हूँ की वहाँ एक शेर सो रहा हे। अब तो मुझे काटो तो खून नहीं। डर के मारे गला सूख गया। झटपट मैंने खिड़की बंद की और अपने आपको बाथरूम में बंद कर लिया।कितने समय बाद हाल से स्टाफ की आवाज आना शुरू हुई यह तो ठीक ठीक याद नहीं लेकिन उनकी आवाज सुनकर मैं जब यह चिल्लाया की इधर मत आना शेर सो रहा हे तो जबाब आया की हां साब अभी अभी यूथ हॉस्टल की तरफ़ चला गया। उस समय भी और आज भी कान्हा में ठहरने के लिए लाग हट से अच्छी कोई जगह नहीं। शेर, तेंदुआ, सोनकुत्ते और गौर तो हमेशा आसपास ही घुमते रहते और चीतल-बन्दर तो वहाँ रहते ही हे।

Tuesday, July 28, 2009

शेरों के कहानी किस्से

एक मित्र का सुझाव था की मैं मेरे किस्सों को अपने ब्लॉग पर लिखूं। मेरा प्रश्न था की क्या आप मुझसे सार्वजनिक रूप से यह कहलवाना चाहते हैं की उन दिनों हम कितनी बेवकूफी किया करते थे। खैर मैं मान गया उन बेवकूफियों को आपको सुनाने के लिए।
१४ जनवरी १९८०, मकर संक्रांति का दिन। आज के दिन पार्क तीर्थयात्रियों के लिए खुला रहता था। आसपास के क्षेत्र से लोग पैदल, बैलगाडी, साइकिल या मोटर साइकिल से श्रवण तालाब में स्नान करने आया करते थे। ऐसी मान्यता हे की दशरथ जी के वाण से श्रवण कुमार की मृत्यू इसी तालाब पर हुई थी। लोग कान्हा मैदान में बैलगाडी साइकिल खड़ी करते, महिलाए अपनी साडियां सुखाती और फुरसतिये वहीं कबड्डी खेलने लगते। यह सब मैंने देखा हे। आज की बात और है की अब वहाँ गाड़ी से उतरना भी मना हे।
कान्हा में आज का म्यूज़ियम तब कान्हा फॉरेस्ट लाज हुआ करता था। मैं किसली में था। दोपहर को यह इच्छा हुई की हम भी श्रवण तालाब तक। उन दिनों हमारे पास होटल की जीप हुआ करती थी। केशव, वाहन चालाक से कहा की चलो घूम आते हे। वह राजी हो गया। जब किसली गेट पर आए तब जाने वालों की भीड़ का पता चला। किसे न करे। भाई जितने लोग सीट पर बैठ सकते हे बैठ जाए खड़े न हो यह कर जान छुडाई। नागपुरे और कुछ अन्य अगली सीट पर मेरे साथ बैठ गए।
श्रवण तालाब में लोग नहा रहे थे, साडियों के रंग से मैदान रंग बिरंगा हो रहा था। जानवरों का दूर दूर तक पता नहीं था। कुछ देर तो अच्छा लगा फ़िर लगा की अब क्या करे। हम नहाने से तो रहे और न ही कोई पूजा पाठ करना हे तो अब क्या करे चालों वापस चलते हे। कान्हा वापस आए तो माइकल सुल्कुम के पिंजरे के पास से चीख पुकार की आवाजे आ रहीं थी। एक बच्चे ने उनमे से किसी एक तेंदुए को हाथ से पुचकारने की कोशिश की थी की उसने पंजा मार दिया। जैसे तैसे उसे मंडला अस्पताल भेजा गया।
अब तक अँधेरा हो चला था। हम भी वापस चलने की तय्यारी कर रहे थे। वापसी में गाड़ी मैं चला रहा था और नागपुरे मेरे साथ वाली सीट पर बैठे थे। कान्हा घाट उतारते तक प्रत्येक व्यक्ति शेर की बात करने लगा। क्या हो ऐसे में यदि शेर दिख जाए तो? मैं कान पकड़ कर एक तरफ़ कर दूँगा तो मैं पूँछ पकड़ कर खींच दूँगा जैसी डींगे हांकी जा रही थी। बंदरी छापर पर एक शेर सड़क पार करते हुए दिखा। अब सबकी बोलती बंद। मेरी भी। मैंने जहाँ से शेर ने सड़क पार की थी ठीक उसी जगह पर गाड़ी रोक दी। देखते क्यां हैं की शेर वहीं घास में दुबक कर बैठ गया था और हम लोगो की और देख रहा था। अब तो ऊपर की साँस ऊपर और नीचे की नीचे। बोलती तो पहले से ही बंद थी। एक किलोमीटर दूर जब किसली गेट पहुंचे तो सब की जान में जान आई। अब तक सब चुप थे। केशव की आवाज सबसे पहले आई, बहुत बड़ा था साब। लेकिन मुझे आज तक याद नहीं हे की जब उसे सड़क किनारे बैठा देखकर मैंने गाड़ी बढाई थी तो गियर बदला या डाला था या नहीं?

Saturday, July 25, 2009

सांप और तितली




आज मुनमुन माहि इतवार की छुट्टी मनाने आ गई। स्कूल कितने दिन का होना चाहिए और उसका १२ साल से कम उम्र के बच्चो के लिए क्या समय होना चाहिए इसके बारे में अभी तक हमारे देश में वैज्ञानिक आधार पर समय निर्धारण नहीं हुआ हे। मैं इंग्लॅण्ड में देखता हूँ की वहाँ बच्चो को शाम के ७ बजे तक बिस्तर में जाने की व्यवस्था कर दी जाती हे। वहां मैंने १५ साल से कम उम्र के बच्चो को शाम को T. V. देखते हुए नहीं देखा। हाँ शनीवार की बात अलग हे जब की बच्चे ८ बजे तक T.V देखते हे और इतवार को देर से नहीं बल्कि अपनी इच्छा से बिस्तर से उठते हे। http://www.sleepforkids.org/html/sheet.html इस वेब साईट के आधार पर ५ से १२ साल के बच्चो को कम से कम १०-११ घंटे की नींद लेना चाहिए। यदि इस उम्र के बच्चो को सुबह ७ बजे स्कूल के लिए तय्यार होकर बस पकड़ना हो तो यह कैसे सम्भव हे। ६ बजे उठने के लिए in बच्चो को शाम ७ बजे तक सो जाना चाहिए? क्या, ८ बजे तक तो हमारे यहाँ खाने की बात ही नहीं होती हे तो बच्चो को भूखा कैसे सुला दे। अधिकाँश घरों से यहीं जबाब मिलेगा।

मुनमुन की स्कूल बस सुबह ७ ३० बजे आ जाती हे और माही की ९ बजे। माहि ने शौक शौक में स्कूल जाना शुरू कर दिया हे। मुनमुन का टिफिन, बोतल, और ड्रेस ने उसे उत्साहित कर दिया। ३ साल की माहि अब बिना किसी नखरे के स्कूल जाती हे। मुनमुन का शौक हे साईकिल चलाना। यहाँ आने के ५ मिनट में आप उसे उसकी साईकिल पर देख सकते हे। के बता सकती हे की मुनमुन कितनी बार साईकिल चलाते हुए गिरी क्योंकि हेज़ में हुए छेद गवाही दे देते हे। हाँ तो मैं बात कर रहा था स्कूल के समय की। यदि छोटे बच्चों का स्कूल १० बजे या उसके बाद से लगे तो उसमे बुराई क्या हे?

माँ बाप इस बारे में यदि स्कूल को कहे तो समय अवश्य बदल सकता हे। नींद पूरी न होने की वजह से बच्चो में चिडचिडापन देखने को मिलता हे और उनकी याददाश्त kamjor हो जाती हे। http://www.sleep-deprivation-info.com/

गब्बू , मेरी भांजी, ने आज बताया की वह अपने स्कूल में आज स्पीचm प्रतियोगिता में प्रथम आई। उसका कहना हे सवाल विषय का नहीं था मेने जिस तरह बोला उस कारण में प्रथम आई। के heमध्यम से बच्चों से रोज बात हो जाती हे।

पिछले कुछ दिनों में हमने खूब सांप देखे। कल नागपंचमी । हम आज सुबह wolf snake की फोटो खींच रहे थे। यह सांप जहरीला न होने के बाद भी दिया में हे क्योंकि अधिकाँश लोग इसमे और common krait क्या अन्तर हे यह नहीं पहचान पाते हे।

Wednesday, July 22, 2009

सूर्यग्रहण का नज़ारा

९६ में मैंने पूर्ण सूर्यग्रहण देखा था। तब उसे देखने के लिए मैं भरतपुर गया था। लोगो को बड़ा शक था की चिडियां चहचहाना बंद कर देंगी एक सज्जन कह रहे थे की वे वापस सोने चली जायेंगी। खैर तब ऐसा कुछ नहीं हुआ। मैं भोलू खान के साथ में था और Openbill Stork की कालोनी का सामने बैठा था। वे पूर्ववत बच्चों को मछली कीडे पकड़ कर खिलाती रही। लोगो का सारा नशा क्षण भर में काफूर हो गया था। हम लोग बैठे बैठे हंस रहे थे की देखिये नामी गिरामी लोग कैसी कैसी बातें कर देते हे और लोग उनकी इज्जत करते हे इसलिए उनकी बात मान लेते हे या उनकी बात काटकर उनकी बेईज्जती नहीं करना चाहते।

मैं आज सुबह ५ बजे जब बाहर निकला तो आसमान पर बादल छाये थे। सूर्य दिखने की उम्मीद न के बराबर थी। मुझे पता था की यह नज़ारा TV Channels के लिए एक सौगात होगा की चलो २-३ घंटे के लिए कुछ तो मिला। ५ बजे से ही सूर्यग्रहण पुराण चालू था। विभिन्न चैनल अपनी अपनी व्याख्या दे रहे थे। ऐसे मौको पर विशेषग्य इतनी तेजी से उगते हे की वे कुकुरमुत्तो को भी मात दे दे। मुझे इसका प्रत्यक्ष अनुभव भरतपुर में हुआ था। पिछली बातों को याद रखने के लिए अभी थोडी देर पहले मैंने भोलूखान से भरतपुर में बात की और पूंछा की वहां क्या हो रहा हे। सीधा सादा जबाब था अब वो उत्साह नहीं बचा। कल रात को थोडी बरसात हुई लेकिन इतनी नहीं की कुछ फर्क पड़ता।

सुबह के बादल देख कर नजारा देखने का मेरा नशा भी काफूर हो चुका था। कुछ देर तक TV विशेषज्ञों का भाषण सुनने के बाद सोचा की अब चाय बनाई जावे। कालीचरण के न होने पर मैं या के दोनों में से एक को यह जिम्मेदारी निभानी पड़ती हे। मैं जब रसोई में पहुंचा तो सुरेश चाबी लेकर आया। खैर तबतक मैं अपनी चाबी से ताला खोल चुका था। मैंने सुरेश को चाय के लिए रुकने को कहा। अब तक के भी रसोई में आ चुकी थी क्योंकि उसे बिल्लियों को खाना खिलाना होता हे। मैं और सुरेश बाहर खड़े थे की अँधेरा होने लगा। बगीचे मैं कौए और मैना बोल रहे थे। उनका बोलना निरंतर जारी रहा। बिजली के तार पर एक फाख्ता बैठी थी वह भी निरंतर बैठी रही। बादलों की वजह से अँधेरा कुछ ज्यादा ही हो गया था। बिल्लियों पर कोई असर नहीं पडा वे अभी भी रसोई के दरवाजे पर बैठी खाना मिलने का इन्तजार कर रही थी। हरिओम ने देखा की मैदान में चर रही मवेशी अँधेरा होते ही इकट्ठी होकर पेड़ के नीचे बैठ गई। ऐसा वे वारिश होने पर करती हे। यदि उन्हें शाम होने का एहसास हुआ होता तो उन्हें घर की और जाना चाहिए था। अँधेरा होना यदि भ्रम की स्थिती पैदा करता हे तो यह भ्रमित होने वाले की बुद्धिमत्ता पर निर्भर होता हे की वह कितना भ्रमित होता हे। इंसान और अन्य में यही अन्तर हे।
और लोगो के अनुभव उनके ब्लॉग पर पड़ने से अन्य लोगो के अनुभव के बारे में पता चलेगा।

Monday, July 20, 2009

माहि टेंट से बाहर आते हुए.

गत वर्ष हम सिक्किम गए थे। वहां पर हम दो लोगो को सोने के लिए जो टेंट दया गया था उसका साइज़ ९ फ़ुट X ७ फ़ुट से अधिक नहीं था। जब वापस आए और मुनमुन ने फोटो देखे तो उसकी भी इच्छा हुई की टेंट में सो कर देखे आख़िर कैसा लगता है. कुछ ही दिनों बाद दिल्ली में मुझे यह टेंट दिखाई दिया तो मैंने खरीद लिया। पुरी सर्दियों भर माहि और मुनमुन उसमे धामा चोकडी मचाते रहे। गर्मियों में कभी कभी जब बिजली न रही तब मैं भी इसमे सोया। लेकिन बरसात में इसमे सोने का तो एक अलग ही आनंद हे। न पानी का डर और न मच्छरों का। इस तरह के टेंट ज्यादा महंगे भी नहीं हे। कुल ३५००/ रूपये का मामला हे। टेंट लगाने में कुल ५-७ मिनट लगते हे और इसे एक छोटे से बैग में लपेट कर रखा जा सकता हे। सस्ती और आरामदायक आवासीय सुविधा का यह एक अच्छा विकल्प हे।

मछली के लिए तलैय्या जो की कुँए को भी जीवन देती रहेगी.


Saturday, July 18, 2009

पानी का हाहाकार

मैं ताला में १९९० में स्थायी रूप से रहने आया। तब अपना मकान बनने का कोई विचार नहीं था। खटिया के अनुभव ज्यादा अच्छे नहीं थे। जिन कारणों से मैंने खटिया छोड़ा था वह मुझे दुबारा घर बसाने से रोक रहे थे। ५-६ साल किराए के मकान में रहा। पुरानी यादे पीछे छूटती जा रही थी। जीवन में कुछ कुछ नया हो रहा था। एक बीज को यदि लगातार हवा पानी नमी मिलती रहे तो अंकुर फूटने में देर नहीं लगती। फ़िर हम तो यह सब १७ महीने से कर रहे थे। अंकुर पल्लवित हो चुका था। अब उसे रोपने के लिए एक घर की जरूरत थी। एक मित्र ने सुझाव दिया की रंछा की और किसी ऐसे एक व्यक्ति का रहना आवश्यक हे जो की उस और हो रहे पर्यावरणीय नुकसान को रोक सके या उस पर नजर रख सके। हमने जमीन रंछा की और ढूंढना शुरू की। एक ज़मीन हमें कुछ ठीकठाक लगी उसे हमने खरीद लिया। जमीन खरीदने के बाद उससे पूंछा की आख़िर तुमने जमीन बेंची क्यो? सीधा सपाट उत्तर दिया की यह असिंचित जमीन हे इसलिए। कब से थी यह जमीन तुम्हारे पास? बाप दादा के जमाने से हे साब। तो अगर तुमने रोज एक तसला मिटटी भी इस जमीन से खोदी होती तो तुम्हारे जीवनकाल में ही इसमे कुआँ ख़ुद जाता? इस प्रश्न पर वह चुप रह गया। खैर मैंने उस पर कुँआ खुदवाया लेकिन बिजली न होने की वजह से वहाँ कभी रह नहीं पाया। आज भी वह ५ एकड़ जमीन यूँ ही पड़ी हे।

पिछले सात सालो से किराये के मकान में रह रहे थे। अचानक एक दिन एक महीने के लिए मकान खाली करने का निवेदन किया गया। कारण भी बड़ा वाजिब था। अब हमने सोचा की यदि ऐसा ही है तो क्यों न कहीं अपना मकान बनाया जाए। हरिओम ने एक जमीन देखि जिसमे की बिजली का खम्बा भी था। इस जमीन को लेने पर सबसे बड़ी मुश्किल, बिजली की, आसान होती नजर आई। यह १९९७ की बात हे। उस समय जब उसका कचरा हटाया तो मवेशी की हड्डियां सबसे ज्यादा मिली। कोई पेड़ नहीं था। विगत १२ साल में अब यह एक जंगल हो चुका हे। अब हमें फल नहीं खरीदने पड़ते।

पिछले कुछ वर्षो की बरसात को देख कर लगा की अगले कुछ वर्षों में हमें भी शहरो की तरह पानी की व्यवस्था न करनी पड़े। यह सोचकर बड़ा डर लगा की यदि ऐसा हुआ तो बड़ी मुसीबत होगी। विचार आया की एक कुआँ हो जाए और उसे recharge करने के लिए एक छोटा सी तलैय्या हो जाए तो भविष्य की मुसीबतों से छुटकारा मिल सकता हे। यह सब इस गर्मी में बमुश्किल कर पाये। अभी हम जो भी पानी उपयोग करते हे उसका एक बूँद भी पानी बरबाद नहीं होता। सब किसी न किसी पौधे को सींचता हे। हमें लगता है की इस कुँए के बाद अब हमें पानी की हाहाकार का अगले पचास वर्षों तक तो सामना नहीं करना पडेगा। यह बात अलग हे की इतने दिनों तक हम जिंदा नहीं रह पायेंगे। सर्दियों में जब कुँए का काम शुरू हुआ था तो हरिओम ने पूंछा की क्या करेंगे एक और कुँए का। मेरा जबाब था शायद तुम और मुनमुन हमारे बाद भी इस जमीन पर रहोगे तो तुम्हे उस समय ज्यादा जरूरत होगी.




Thursday, July 16, 2009

बरसात की वह रात.

मैं अपनी होटल मेनेजर की नौकरी छोड़ चुका था। अब टूर लीडर का काम करता था। जितना पैसा महीने भर खपकर मिलता उतना ही अब एक सप्ताह में हँस बोलकर मिलने लगा। जीवन बड़े मजे में कट रहा था। साल में कुल १०० -१२५ दिन का काम मिलता जो की बहुत था। साल में २४० दिन की छुट्टियाँ बिताना बड़ा कष्टकारी काम था। अब अपना कोई घर नहीं बचा था। माँ के साथ बायाँ ( बुधनी के पास)में रहता था। घर में आँगन के पास ही एक बिना दरवाजे वाले कमरे में मैं सोता था। इस कमरे की दीवाल से लगे खेत थे। रात को जब पानी बरसता और खेत में पानी भरता तो उस खेत के सारे सांपो के लिए मेरे कमरे की दीवाल एक बड़ा सहारा थी। मैं मच्छरदानी लगाकर और रातभर बल्ब जलाकर सोता। रात को जब नींद खुलती तो सबसे पहले यह देखता की मच्छरदानी से बाहर निकलना सुरक्षित भी हे या नहीं। खपरैल वाली छत पर यहाँ वहां साँप चढ़े रहते। मैं उन्हें तब तक बर्दाश्त करता जब तक वह ज़मीन पर नहीं आते। मैंने अधिकतम १०-११ साँप तक छत पर लटके देखे।
एक दो बार साँप मच्छरदानी पर भी गिरे। अधिकतर साँप पनियारे (keelback) हुआ करते थे। मुझे केवल इस बात का डर लगता था की कहीं साँप मच्छरदानी में अन्दर न घुस जाए। यहाँ भी सांपो से वास्ता पड़ता हे। अधिकतर सांपो से तो बिल्लियाँ ही निपट लेती हे। हाँ हमारे पास ६-८ बिल्लियाँ तो हमेशा रहती हैं। बहुत दिनों से कोई साँप नहीं देखा लेकिन कुछ दिनों पहले कुएं में तीन साँप गिर पड़े थे जिन्हें बाल्टी में भरकर निकाला। पिछले साल एक साँप कमरे में घुस आया था तो उसे निकालने के लिए एक बिल्ली को दिखाया और मिनट भर में साँप बाहर। उनके खेल को हमने अपने कैमरे में कैद किया। हाथ दो हाथ लंबे साँप को बिल्लिया आसानी से खा जाती हैं। हाँ यह बात जरूर हे की सब बिल्लियाँ ऐसा नहीं करति। हरिओम की दोनों बिटियों को साँप देखने में बड़ा मजा आता हे। पिछले साल माहि किचन के पास में बैठी लकड़ी से कुछ हिला रही थी। अचानक कालीचरण के ध्यान उस पर गया, पास जाकर देखा की माही एक साँप को हेज से बाहर निकालने की कोशिश कर रही हे। तब माही की उम्र कुल दो साल थी। पिछले साल कालीचरण और राजेश गोलघर में बैठकर चाय पि रहे थे अचानक उनकी नजर ऊपर गई तो देखा की एक साँप बल्ली में लिपटा हे। दोनों भागकर बाहर। चाय ख़त्म कर हमें बुलाया। के फ़ौरन किताब लेकर आई। चिंता की कोई बात नहीं। जहरीला नहीं। नो प्रॉब्लम। फ़िर तो अगले एक महीने तक उसे वहीं देखते रहे। सितम्बर में जब घास बदलने का समय आया तो फ़िर एक साँप निकला। के ने कहा की हटो मैं इसे निकालती हूँ। के ने जब उसे निकालने की कोशिश की तो वह जान बचाकर भागा और लगभग लगभग कालीचरण के उपर गिरा। सबसे जोरदार किस्सा तो कृपाल का हे। खाना लगाने के बाद वह किचेन के बाहर खड़ा था। उसे कुछ ऐसा लगा जैसे उसके पेंट में कोई चीज चढ़ रही हे। खड़े खड़े उसने पैंट झ्त्कारा तो एक साँप गिर पडा। एक रात कालीचरण सोने गया तो उसे लगा जैसे उसके बिस्तर में कुछ चल रहा हे। चादर उठा कर देखा तो एक साँप। अभी तक हमने अपनी जमीन पर केवल दो जहरीले साँप देखे। एक कालीचरण ने मारा जो की Common Krait था और दूसरा Russels Viper. साँप काटने की अधिकतम घटनाएं शाम को होती हे। सूर्यास्त के बाद २-३ घंटे तक साँप का खतरा अधिक रहता हे। जहरीले साँप का काटा हुआ व्यक्ति दवाई से ही ठीक होता हे।

Saturday, July 11, 2009

बरसात की एक रात

बरसात की एक रात जिसमे नींद न आए और डर भी लगे तो रात काटना बड़ा मुश्किल हो जाता हे। रात ११.३० तक काम करता रहा। लाइट बंद करने के वाबजूद भी कीडे मकोडे से लडाई बदस्तूर जारी रही। सौंप के दर्शन भी हुए। उसकी उपस्थिति का पता बिल्ली की वजह से चला अन्यथा हमें तो पता भी नही चलता की वे महाशय कब हमारे कमरे में पधारे। रात में अजीब अजीब से सपने आते रहे चोरो को पाइप खींचते हुए देखना तो गाय को कुए में गिरे देखना। पहला सौंप से जुदा था तो दूसरा इस बात से की लेबर इस सप्ताह नहीं आई हे और रोज सोचता हूँ की कोई इसमे गिर न पड़े। एक गाय जो ६ फ़ुट उंची फेन्स कूद कर अन्दर आ जाती हे उसका हमेशा डर रहता हे की वो कही कुँए में न गिर जाए। नींद के लिए भी लंबा इन्तजार करना पड़ा। इन्तजार करने का भी अपना एक सुख होता हे। इस सुख में निराशा, हताशा, बोरियत, गुस्सा, प्यार सब कुछ होता हे। नींद के इन्तजार में कब नींद आ गई पता ही नही चला।
इस साल तो ऐसा लगता हे की सावन सूखे, न भादों हरे वाली कहावत चरितार्थ होने जा रही हे. बादल भी बेरहमदिल होते जा रहे हे। लगता हे ये भी लोगो के दिल में आशा जगाकर गायब हो जाने की सोच रहे हे। महगाईं अगर सिर से उपर हे तो सब्जियों की उपलब्धता भी रसातल में हे। शहर तो जैसे तैसे ठीक हे लेकिन गाँव में तो अब आलू प्याज भी ख़राब मिल रहा हे। लौकी जैसी सब्जी के दर्शन दुर्लभ हे। यह गाँव एक जुलाई से पुरी तरह निर्जीव हो जाता हे। ब्रेड के लिए दूकानदार अक्टूबर तक इन्तजार करने को कहता हे। सब्जी उगाना भी कोई आसान खेल नहीं अपनी जरुरत की सब्जियां हम ख़ुद नही उगा पाते हे। जब सब्जी उगाते हे तब पता चलता हे की ये खेल नही आसान मेरे दोस्त. आज से पच्चीस साल पहले में एक सब्जी वाले के पास खड़ा था एक सज्जन उससे मोल भाव कर रहे थे। मोल भाव करने के बाद उन्होंने फ़िर भी पैसे कम दिए। दुकानदार अड़ गया तो उन्हें पूरे पैसे देने पड़े लेकिन यह कहना नहीं भूले की अच्छा थोडी धनिया मिर्च तो डाल दो। बाद में उसका कहना था की अब से सस्ती सब्जी वालों को सब्जी के बीज का पैकेट खरीद कर घर उगाने की सलाह दिया करूँगा। मैं सब्जी और फल खरीदने में कभी मोल भाव नहीं करता।
कल मुनमुन माही आ गए। माही अंग्रेजी में बात नहीं कर पाती इसलिए के की उपस्थिति में शुरू में चुप रहती हे।
आज सुबह माही का मुंह खुला तो फ़िर तो आंटी कुआँ देखने चले, तो मेंढक और सांप दिखाओ।