Wednesday, June 23, 2010

आखिर किसे दोष दिया जाए.

यह सब क्यों लिख रहा हूँ ?? इसलिए क्योंकि अब इन्हें पड़ने वाला एक पाठक आ गया हे।
मेरी शादी को हुए अभी कुछ ही सप्ताह हुए थे। हम पति पत्नी साथ साथ रहने को बड़े उल्लासित थे लेकिन अभी कुछ बाधाये थी। एक बाधा थी की मेरी पत्नी अभी कालेज में पढ़ रही थी और उसके माता पिता परीक्षा से पूर्व मेरे साथ भेजने में उत्सुक नहीं थे। खैर होली के बाद कुछ ऐसा संयोग बना की हमने हम दोनों को खंडवा से सतना की रेलयात्रा के लिए तय्यार पाया। वह बिना आरक्षण वाली यात्रा थी और हमारा समय दरवाजे के पास सूटकेस पर बैठकर कटा। उस समय दुख सूटकेस पर बैठकर जाने का नहीं था बल्कि साथ साथ यात्रा करने का असीम उत्साह था। क्या क्या बातें हुई यह तो अब अच्छी तरह से याद नहीं हे लेकिन सतना में सुनील अवस्थी के पास खाना खाकर हम बस द्वारा खजुराहो के लिए रवाना हो गए। घर पत्नी के लिए सजाया जावे या फिर पत्नी आते ही घर अपने आप सज जाता हे वाली दुविधा मेरे साथ थी। उन दिनों फोन करने के लिए भी घंटो लाइन में खड़े होकर इन्तजार करना पड़ता और औरसो फोन करके आने की सूचना देने वाला काम भी नहीं हो पाया। । हमें पहुँच कर हमने उस उस धुल भरे मकान का दरवाजा खोला और बड़े ही गर्व से जिन्दगी मकान को jisme पिछले दस दिनों से सफाई भी नहीं हुई थी अपनी पत्नी को dikhaayaa ।
बाद में किसी ने आकर मकान मकान साफ़ किया aur hame चाय पिलाई। jindagi कुछ ही देर में लाइन पर आ गई । मातादीन ने खाने के लिए बुलाया और खाने से पहले आमरस पीने को दिया। बगीचे में कुछ आम के पेड़ थे। इन आमो को हमने बड़ी मुश्किल में लोगो की नजरो से बचाया था। यह आमरस पत्नी को इतना अच्छा लगा की अब तो हम सुबह शाम इसे ही खाने जैसा पीने लगे।
कुछ दिनों बाद पत्नी ने बुखार जैसा रहने की शिकायत की। उन दिनों के बुखार में यह बुखार बड़ा ही मामूली लगा और हमने उस पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया। कुछ दिनों में अस्पताल जाने की नौबत आ गई। डाक्टर ने कहा की चेचक हे और पडोसी उसे माता का प्रकोप बता रहे थे। खैर हमने उसे चेचक ही माना। जब चेचक के दाने फूलकर पत्नी के कपड़ो से चिपक गए तो उन्हें निकालना बड़ी ही कष्टप्रद प्रक्रिया थी।
निर्णय लिया गया की कपडे न रहे तो चिपकेगा क्या? अब पत्नी केवल चादर ओड़ कर लेटी रहती थी। मैं अपनी दोनों नौकरी कर रहा था।
इस चेचक के लिए किसे दोष दे?
वह तो शायद आज भी आम को ही दोषी ठहरा देगी।
बेचारा आम।
हमने आज भी लेकिन आम खाना नहीं छोड़ा.