Wednesday, March 31, 2010

स्वर्गीय अंजना तिवारी

बहुत दिनों से कुछ नहीं लिख पाया इसके लिए अफ़सोस हे। समस्या समय और रोटी के साधन की हे जिसमे की रोटी के साधन जुटाने की जुगाड़ में समय व्यतीत हो जाता हे फिर बाकी कामो के लिए समय को प्राथमिकता के आधार पर उपयोग करना पड़ता हे। फिरोजाबाद की यात्रा के बाद दो बार राजस्थान हो आया तो वह सब सुनना अभी बाकी हे लेकिन आज तो सिर्फ अंजना के बारे में बात करेंगे।
कल यानी ३० मार्च २०१० की सुबह खबर मिली की अभी अभी एक लड़की को कुच्वाही गाँव में शेर ने मार डाला हे। बड़े अनमने मन से मैं जाने को तय्यार हुआ। अनमने मन से इसलिए की जिस घर में किसी की मौत हो गई हो और वहां हम सिर्फ इसलिए पहुँच जाए की हमें उस घटना की विस्तृत जानकारी हो सके, यह उस मृत व्यक्ति का अपमान हे। कल जितने लोग वहां थे उनमे से कोई भी उस परिवार को सांत्वना व्यक्त नहीं कर रहा था बल्कि हर व्यक्ति जानना चाह रहा था शेर कहाँ था, किधर से आया, लड़की क्या कर रही थी आदि आदि। तमाशबीनो की भीड़ थी। जाने अनजाने हम भी उस भीड़ में शामिल थे।
कुच्वाही गाँव पार्क की सीमा से केवल २-३ किलोमीटर दूर हे। गाँव के आसपास जंगल का नामोंनिशान नहीं हे। घर से लगे हुए खेत हे जिनमे की इस समय गेंहू की फसल पक कर तैयार हे । अंजना के घर से लगा हुआ उनका खेत हे। घर से जिस महुआ के पेड़ के नीचे वह महुआ बीनने गई थी उसकी दूरी २०० मीटर से अधिक नहीं होगी। दुर्भाग्य से जहां वह महुआ बीनने गई थी उससे कुछ मीटर की दूरी पर एक शेर एक बैल को मारकर खा रहा था। अंजना का असमय वहां पहुँच जाना शेर को नागवार गुजरा होगा और अपने स्वयम के हितों की रक्षा में उसने अंजना पर हमला कर दिया।
अंजना उस हमले से कहाँ बचने वाली थी। आनन् फानन में प्राण पखेरू उड़ गए होंगे। उन कुछ मिनटों में क्या क्या उसके दिमाग में आया होगा। अंजना की चीख पुकार भी किसी ने नहीं सुनी। अंततः मैं भी भारी मन से उस घर में अन्दर गया। अंजना की बहन उसके सर को अपनी गोद में रखकर बैठी थी, स्तब्ध और भयभीत। बार - बार अंजना के चेहरे और सिर पर हाथ फेरती। परिवार के बाकी सदस्य चीख चीख कर रो रहे लेकिन उसके मुंह से आवाज भी नहीं निकल रही। वह तो बस एकटक उसकी और निहार रही थी। उसकी स्थिति देख मुझे मेरा दिन याद आया जब मेरे पिता की मृत्यु के समय मेरे भाई बहन मुझसे लग कर रो रहे थे और मैं पत्थर सा स्तब्ध खडा था। मेरी आँखों में आंसू नहीं थे, मेरे सामने भविष्य घूम रहा था, उन कुछ क्षणों में ही मैंने अपने आपको जिम्मेदारियों से लाद लिया था। मैं जानता हूँ की ऐसी स्थिति में क्या होता हे शायद यही सब कुछ अंजना की बहन के साथ हो रहा था। उस दिन घर में क्या क्या हुआ यह सब जानने की कोशिश करूंगा लेकिन कुछ महीनो बाद।
शेर और मनुष्य के बारे में कल से ढेर सारी बाते हो रहीं हे । ढेरो सवाल मन में आ रहे हे और उनका उत्तर जानने के लिए कई लोगो से चर्चा की। मेरे मित्र दिनेश ने जो कहा वह सबसे सटीक उत्तर था।
एक समय था जब गाँव और जंगल सब आपस में एक थे, आज गाँव और जंगल के बीच की दूरी बढ़ गई हे। पहले शेर के द्वारा मवेशी या आदमी को मारना एक प्राक्रतिक विपदा मान ली जाती थी लेकिन अब शेर तुम्हारा और गाँव मेरा वाली स्थिति हो गई हे तो आपस में दुश्मनी बढना स्वभाविक हे। शेर आपका हे तो अपने पास रखो वाला सोच अब बढ़ता जा रहा हे।