Thursday, October 1, 2009

स्वर्गीय सीताराम दुबे.

मेरे जीवन में मैं अपने दो मित्रो को हमेशा याद करता हूँ और करता रहूँगा। दोनों से मेरी भेंट मध्य प्रदेश पर्यटन की नौकरी के दिनों में हुई थी। अफ़सोस की दोनों ही इस दुनिया से बहुत जल्दी कूच कर गए। जुल्फिकार मोहम्मद खान और सीताराम दुबे, अब दोनों ही स्वर्गीय। दोनों ही मेरे मातहत रहे लेकिन उसके बाद भी हमारे बीच एक दोस्ती का रिश्ता रहा जो की उन दोनों के जीवन के अन्तिम दिनों तक कायम रहा। श्री आर पी चौहान ने मुझे सूचित किया की दुबे जी को अभी अभी अस्पताल में भरती किया हे पचमढ़ी में दिल का दौरा पडा था ऑपरेशन की सलाह दी हे डॉक्टर ने। ऑपरेशन हो रहा हे लेकिन यह भी कहते हे की दोनों किडनी काम नहीं कर रहीं हे शकर की बीमारी भी हे। देखो क्या होता हे। सोचा आपको बता दू।
वहाँ यह बात सबको पता थी की मेरे और सीताराम के बहुत अच्छे सम्बन्ध हे यह बात और हे की हम सालो एक दूसरे से नही मिल पाते हे। फ़ोन पर लगभग हर पखवाडे बात हो जाती थी। सीताराम दुबे ने अपने स्वास्थय के बारे में मुझे कोई चिंताजनक स्थिति हो ऐसी बात कभी नहीं बताई। सीताराम और मैं साथ साथ पचमढ़ी और कान्हा में रहे। उन ६-७ सालो की अनगिनत यादे हे। सीताराम दुबे के जाने से मैंने एक ऐसा मित्र खो दिया जो की सूख दुःख के दिनों में हमेशा मेरा जोश बढाता रहा।
मैं इस दुःख से आसानी से नहीं उबर पाऊंगा यह मुझे पता हे। सीताराम दुबे की यादे हमेशा मुझे उसकी याद दिलाती रहेंगी। कभी उसके किस्सों का यहाँ वर्णन करूंगा।
स्वर्गीय जुल्फिकार और सीताराम दुबे दोनों को मैं नमन करता हूँ।
इश्वर उनकी आत्मा को शान्ति दे ऐसी मेरी प्रार्थना हे।

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