Monday, September 21, 2009

केरल यात्रा

मेरी केरल यात्राओं में केवल पहली केरल यात्रा ही ऐसी एक यात्रा हे जिसकी मेरे पास बहुत सुनहरी यादें हे पिछले कुछ महीनो से शैलेश दुबे बार बार याद दिला रहे थे की चलो केरल हो आए केरल की अपनी समस्याए हे चावल रोज खाने वालो के लिए तो और भी ज्यादा समस्या हे शाकाहारी होना भी एक समस्या हो सकता हे लेकिन केला संतरा जैसे फलो का स्वादिष्ट होना बड़ी समस्या थी



मैं ११ सितम्बर को ताला से चला तो उसी दिन शैलेश मंडला से और हम लोग जबलपुर स्टेशन पर इकट्ठे हुए कुछ समय अपने पुराने मित्रो के साथ बैठकर गप्प बाजी की हमें श्रीधाम एक्सप्रेस गाड़ी से इटारसी पहुंचना था गाड़ी नियत समय पर प्लेटफार्म पर लगी और नियत समय पर चल भी दी लगा की यात्रा की शुरुआत बड़ी ठीक हो रही हे और ऐसा ही हुआ भी। कम से कम इटारसी तो ठीक समय पर पहुँच गए रानी ने कहा जरूर था की वह खाना लेकर स्टेशन पर जायेगी लेकिन हमने ही मना कर दिया जैसे तैसे हम अपने सामान को घसीट कर एक नम्बर प्लेटफोर्म पर पहुंचे, यह सोच कर की यहाँ तो ठीक ठाक cafetaria होगा तो उसमे बैठकर खाना खा लेंगे. लेकिन हुआ ठीक इसके उलटा इतना बोझ लेकर स्टेशन के बाहर जाने की हिम्मत नहीं थी सो सोचा अब जैसा भी हे यहीं खा लिया जाए



खाने के इन्तजार में बिल्ली के बच्चो जैसे मोटे चूहों को टेबल के नीचे घुमते देखते रहे खैर खाना खाकर बाहर निकले तो मीठा खाने के नाम पर श्रीखंड खाया शायद यही गलती थी



केरल एक्सप्रेस समय पर आई कहाँ तो हमारी एक टिकेट प्रतीक्षा सूचि में थी और यहाँ सारा डिब्बा ही खाली पडा था धन्य हो रेल की माया ३३ घंटे की उबाऊ थकान भरी रेल यात्रा से जब छुटकारा मिला तो वापसी की रेल यात्रा का डर सताने लगा


स्टेशन के पास ही हमारा होटल था पहुँचने में कोई ख़ास परेशानी नहीं हुई तीसरे साथी कुल्हाली पहले ही वहां पहुँच चुके थेनहाकर थकान उतारी और पेटपूजा के लिए होटल से बाहर निकलेमछली प्रेमियों को जो पहला होटल दिखा वह था मुग़ल रेस्तारांत और हम लोग उसी और बढ लिएछोटे ढाबो में खाने का स्तर कोई ख़ास ठीक नहीं होता हेचावल बहुत ही घटिया प्रकार का होता हेकहीं कहीं इडली में इल्ली नजर जाती हे मेरा ख्याल हे की उत्तरभाशियो को खाने में जरूरत से ज्यादा ख्याल रखना चाहिएभोजन की बात करूँ तो मेरी केरल यात्रा में केवल बड़े होटलों को छोड़कर बाकी जगह खाना बहुत ही मामूली किस्म का थाबोट में भी खाने की किस्म कोई अच्छी नहीं थी

केरल आकर कथकली देखने की इच्छा थीमालूम पडा की स्टेशन से २०० मीटर दूर ही एक परिवार इस प्रकार का आयोजन रोज शाम को बजे करता हेहम लोग बजे पहुंचे तो देखा की कलाकार अभी अपना चेहरा रंग रहे हेटोली के मुखिया चेहरे पर किए जाने वाले रंग का महत्त्व समझा रहे थेदो घंटे बिताने के बाद समझ में आया की यह परिवार कितनी मुश्किलों से इस विधा को जिंदा रख पेट पालने की कोशिश में लगा हुआ हे१५० रूपये टिकट और उस शाम देखने वाले कुल दर्शकऐसा रोज होता हे कभी कभी तो केवल दर्शक के लिए यह सब करना पड़ता हेहमारे होटल वाले को भी इस जगह की जानकारी नहीं थीव्यावसायिकता की कमी के कारण ग्राहक दूकानदार के पास नहीं पहुँच पा रहा हे, ऐसा हमें महसूस हुआ

कोचीन से मुन्नार का रास्ता दर्शनीय हेमुन्नार के बारे में सूना था की निलगिरी ताहर के बारे में सूना था की वह आसानी से देखने को मिल जाते हे लेकिन वहां तो लोगो को हफ्तों से दर्शन नही हुएचाय बागानों में छिडकाव होने की वजह से तितली भी देखने को नहीं मिलीमुन्नार पहुँच कर कर पहले मेरी तबियत ख़राब हुई और बाद में शैलेश कीमैं तो एक दिन कमरे से बाहर ही नही निकलादो रात मुन्नार में रूक कर जब वापस रहे थे तो पता चला की Bhopal से Mathew भी छुट्टी मनाने यहाँ आया हुआ हेमुन्नार से हम सीधे बेक वाटर में एक रात बिताने के लिए चल दिएबेक वाटर की यात्रा कोई ज्यादा अच्छी नही रहीशायद हम लोगो की अपेक्षाए ज्यादा थी जिसके कारण हमें सब कुछ फीका फीका लाग रहा थारात को जब एसी चला तो पता चला की जनरेटर का सारा धुंआ एसी के माध्यम से कमरे में रहा हेजनरेटर बंद करा कर उमस भरी रात पंखे के नीचे काटीशाम Mathew के साथ कटीपुरी केरल यात्रा की यहीं एक यादगार शाम थी या फ़िर कथकली नाच देखने वाली शाममुन्नार के बाद तो हम लोग एक दिन पहले वापस आने की सोच रहे थे

मंडला पहुँच कर शैलेश का फ़ोन आया की आज तो खूब जी भर के रोटी खाऊंगा

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