Saturday, July 11, 2009

बरसात की एक रात

बरसात की एक रात जिसमे नींद न आए और डर भी लगे तो रात काटना बड़ा मुश्किल हो जाता हे। रात ११.३० तक काम करता रहा। लाइट बंद करने के वाबजूद भी कीडे मकोडे से लडाई बदस्तूर जारी रही। सौंप के दर्शन भी हुए। उसकी उपस्थिति का पता बिल्ली की वजह से चला अन्यथा हमें तो पता भी नही चलता की वे महाशय कब हमारे कमरे में पधारे। रात में अजीब अजीब से सपने आते रहे चोरो को पाइप खींचते हुए देखना तो गाय को कुए में गिरे देखना। पहला सौंप से जुदा था तो दूसरा इस बात से की लेबर इस सप्ताह नहीं आई हे और रोज सोचता हूँ की कोई इसमे गिर न पड़े। एक गाय जो ६ फ़ुट उंची फेन्स कूद कर अन्दर आ जाती हे उसका हमेशा डर रहता हे की वो कही कुँए में न गिर जाए। नींद के लिए भी लंबा इन्तजार करना पड़ा। इन्तजार करने का भी अपना एक सुख होता हे। इस सुख में निराशा, हताशा, बोरियत, गुस्सा, प्यार सब कुछ होता हे। नींद के इन्तजार में कब नींद आ गई पता ही नही चला।
इस साल तो ऐसा लगता हे की सावन सूखे, न भादों हरे वाली कहावत चरितार्थ होने जा रही हे. बादल भी बेरहमदिल होते जा रहे हे। लगता हे ये भी लोगो के दिल में आशा जगाकर गायब हो जाने की सोच रहे हे। महगाईं अगर सिर से उपर हे तो सब्जियों की उपलब्धता भी रसातल में हे। शहर तो जैसे तैसे ठीक हे लेकिन गाँव में तो अब आलू प्याज भी ख़राब मिल रहा हे। लौकी जैसी सब्जी के दर्शन दुर्लभ हे। यह गाँव एक जुलाई से पुरी तरह निर्जीव हो जाता हे। ब्रेड के लिए दूकानदार अक्टूबर तक इन्तजार करने को कहता हे। सब्जी उगाना भी कोई आसान खेल नहीं अपनी जरुरत की सब्जियां हम ख़ुद नही उगा पाते हे। जब सब्जी उगाते हे तब पता चलता हे की ये खेल नही आसान मेरे दोस्त. आज से पच्चीस साल पहले में एक सब्जी वाले के पास खड़ा था एक सज्जन उससे मोल भाव कर रहे थे। मोल भाव करने के बाद उन्होंने फ़िर भी पैसे कम दिए। दुकानदार अड़ गया तो उन्हें पूरे पैसे देने पड़े लेकिन यह कहना नहीं भूले की अच्छा थोडी धनिया मिर्च तो डाल दो। बाद में उसका कहना था की अब से सस्ती सब्जी वालों को सब्जी के बीज का पैकेट खरीद कर घर उगाने की सलाह दिया करूँगा। मैं सब्जी और फल खरीदने में कभी मोल भाव नहीं करता।
कल मुनमुन माही आ गए। माही अंग्रेजी में बात नहीं कर पाती इसलिए के की उपस्थिति में शुरू में चुप रहती हे।
आज सुबह माही का मुंह खुला तो फ़िर तो आंटी कुआँ देखने चले, तो मेंढक और सांप दिखाओ।

7 comments:

गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

wah ! narayan narayan

राजेंद्र माहेश्वरी said...

हिंदी भाषा को इन्टरनेट जगत मे लोकप्रिय करने के लिए आपका साधुवाद |

संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर…..आपके इस सुंदर से चिटठे के साथ आपका ब्‍लाग जगत में स्‍वागत है…..आशा है , आप अपनी प्रतिभा से हिन्‍दी चिटठा जगत को समृद्ध करने और हिन्‍दी पाठको को ज्ञान बांटने के साथ साथ खुद भी सफलता प्राप्‍त करेंगे …..हमारी शुभकामनाएं आपके साथ हैं।

अर्कजेश said...

बहुत बढिया एकदम आंखों के सामने । आप ब्लॉस्पॉट पर डिटेल्स के साथ "पिक्चर" ब्लॉग बनाइये ।

बहुत बढिया रहेगा ।

word verification hata deejiye |

वन्दना अवस्थी दुबे said...

मज़ा आ गया. जानती हूं, आपके पास अद्भुत और रोमांचक संस्मरण का खजाना है..उम्मीद है, अब हम सब सब लाभान्वित होंगे..

वन्दना अवस्थी दुबे said...

शब्द-पुष्टिकरण हटा लेगे तो सुविधा होगी, यदि आप चाहें तो..

Avinash Upadhyay said...

I do not know how to get Hindi fonts. Otherwise I would have preferred that. Loved reading this post as well as others in Hindi. Although I normally converse and write in English (and quite fluently and correctly so), I still prefer Hindi because the flavour and fragrance of the mother tongue is never duplicated in any other language.
Avinash