Wednesday, July 22, 2009

सूर्यग्रहण का नज़ारा

९६ में मैंने पूर्ण सूर्यग्रहण देखा था। तब उसे देखने के लिए मैं भरतपुर गया था। लोगो को बड़ा शक था की चिडियां चहचहाना बंद कर देंगी एक सज्जन कह रहे थे की वे वापस सोने चली जायेंगी। खैर तब ऐसा कुछ नहीं हुआ। मैं भोलू खान के साथ में था और Openbill Stork की कालोनी का सामने बैठा था। वे पूर्ववत बच्चों को मछली कीडे पकड़ कर खिलाती रही। लोगो का सारा नशा क्षण भर में काफूर हो गया था। हम लोग बैठे बैठे हंस रहे थे की देखिये नामी गिरामी लोग कैसी कैसी बातें कर देते हे और लोग उनकी इज्जत करते हे इसलिए उनकी बात मान लेते हे या उनकी बात काटकर उनकी बेईज्जती नहीं करना चाहते।

मैं आज सुबह ५ बजे जब बाहर निकला तो आसमान पर बादल छाये थे। सूर्य दिखने की उम्मीद न के बराबर थी। मुझे पता था की यह नज़ारा TV Channels के लिए एक सौगात होगा की चलो २-३ घंटे के लिए कुछ तो मिला। ५ बजे से ही सूर्यग्रहण पुराण चालू था। विभिन्न चैनल अपनी अपनी व्याख्या दे रहे थे। ऐसे मौको पर विशेषग्य इतनी तेजी से उगते हे की वे कुकुरमुत्तो को भी मात दे दे। मुझे इसका प्रत्यक्ष अनुभव भरतपुर में हुआ था। पिछली बातों को याद रखने के लिए अभी थोडी देर पहले मैंने भोलूखान से भरतपुर में बात की और पूंछा की वहां क्या हो रहा हे। सीधा सादा जबाब था अब वो उत्साह नहीं बचा। कल रात को थोडी बरसात हुई लेकिन इतनी नहीं की कुछ फर्क पड़ता।

सुबह के बादल देख कर नजारा देखने का मेरा नशा भी काफूर हो चुका था। कुछ देर तक TV विशेषज्ञों का भाषण सुनने के बाद सोचा की अब चाय बनाई जावे। कालीचरण के न होने पर मैं या के दोनों में से एक को यह जिम्मेदारी निभानी पड़ती हे। मैं जब रसोई में पहुंचा तो सुरेश चाबी लेकर आया। खैर तबतक मैं अपनी चाबी से ताला खोल चुका था। मैंने सुरेश को चाय के लिए रुकने को कहा। अब तक के भी रसोई में आ चुकी थी क्योंकि उसे बिल्लियों को खाना खिलाना होता हे। मैं और सुरेश बाहर खड़े थे की अँधेरा होने लगा। बगीचे मैं कौए और मैना बोल रहे थे। उनका बोलना निरंतर जारी रहा। बिजली के तार पर एक फाख्ता बैठी थी वह भी निरंतर बैठी रही। बादलों की वजह से अँधेरा कुछ ज्यादा ही हो गया था। बिल्लियों पर कोई असर नहीं पडा वे अभी भी रसोई के दरवाजे पर बैठी खाना मिलने का इन्तजार कर रही थी। हरिओम ने देखा की मैदान में चर रही मवेशी अँधेरा होते ही इकट्ठी होकर पेड़ के नीचे बैठ गई। ऐसा वे वारिश होने पर करती हे। यदि उन्हें शाम होने का एहसास हुआ होता तो उन्हें घर की और जाना चाहिए था। अँधेरा होना यदि भ्रम की स्थिती पैदा करता हे तो यह भ्रमित होने वाले की बुद्धिमत्ता पर निर्भर होता हे की वह कितना भ्रमित होता हे। इंसान और अन्य में यही अन्तर हे।
और लोगो के अनुभव उनके ब्लॉग पर पड़ने से अन्य लोगो के अनुभव के बारे में पता चलेगा।

4 comments:

Udan Tashtari said...

जानकारी का आभार..

वन्दना अवस्थी दुबे said...

बहुत सुन्दर खाका खींचा है आपने..यहां तो मौसम एकदम साफ़ था, और इतना सुन्दर सूर्य-ग्रगण दिखाई दिया कि कुदरत की चाल पर बहुत देर तक विचार करती रही. मन्दिरों से आ रही शांति-पाठ की आवाज़ों पर भी....

Avinash Upadhyay said...

Mere yahan bhi baadal the. Lekin surya grahan hote hi andhera gaharaa gaya. Chidiyaen, jo thodi der pahle chahchaha rahi thin, unki aawaz band ho gayi. Lekin woh ud kar patton mein chhupi nahin. We wahin baithi rahin.
Billiyon par koi asar nahin paraa. Hamare yahan do billiyan hain aur 3-4 bilav chakkar katte rahte hain. Na billiyon par aur na bilaawon par koi asar paraa.
Avinash

Bandhavgarh said...

Dear Avinaash ji,
Your observation is similar to mine.Thanks for sharing.
Satyendra