Wednesday, August 12, 2009

harchhat

आख़िर ब्लॉग देवता ने हिन्दी में harchhat लिखने से साफ़ मना कर दिया। में भी आसानी से उनकी बात मान गया।
मेरे जीवन में ढेर सारी ऐसी घटनाएं हुई जिन्होंने की mujhhe उस बारे में बार बार सोचने पर मजबूर किया की आख़िर मेरी आस्था का क्या महत्त्व हे।
मैं १९ साल की उम्र में नौकरी करने के लिए घर से निकल पडा था। २-३ नौकरियां करने के बाद एक रेस्टारेंट में बिल क्लर्क की नौकरी मिली। बड़ी बढिया नौकरी थी। Airconditioned हाल में नौकरी और ड्यूटी के समय पर मनचाहा भोजन।
नाश्ते के लालच में मैं समय से २ घंटे पहले पहुँच जाता और स्टोर में कुछ लिखा पढ़ी करता ताकि मेरी उपस्थिति दर्ज हो जाए। मालिक कभी भी दोपहर तीन बजे से पहले नहीं आते वो भी केवल कुछ क्षणों के लिए। मैं सुबह पहुंचता और सबसे पहला काम था की cash counter पर टंगी भगवान् की फोटो पर अगरबत्ती लगाता। mujhhe पूजा करने में कोई १५ मिनट लगते।
एक दिन मालिक सुबह ही आ गए। मेरी पूजा बस ख़त्म ही हुई थी की उनका आना हुआ।
आते से ही पूंछा What is this smell??
मैंने बड़े गर्व से कहा - सर, मैंने पूजा की थी।
Where??
मैंने उन्हें तस्वीर दिखाई।
तस्वीर देखकर उन्होंने मेरी ओर देखा और कहा Genleman you dont need to worry about my business. I am very well capable to look after it and if you worried about your job do this at home.
मैं स्तब्ध। बाद में दिन भर सोचता रहा की आख़िर सत्यता कहा हे। पूजा अब भी करता हूँ लेकिन मन्दिर जाने की कोई ख़ास इच्छा नही रखता वह भी इसके बाद की जब किसी ने मुझसे कहा की जिस भगवान् की तुम घर में रोज पूजा करते हो उस पर अविश्वास क्यो करते हो।
अब मैंने आस्था और विशवास में अन्तर करना सीख लिया हे.

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