Sunday, August 9, 2009

Kay का स्वास्थ्य


सितम्बर मैं सिक्किम से वापस आने के समय से ही Kay का स्वाथ्य ठीक नहीं था। हमारा सोच था की शायद यह सिक्किम के वातावरण की वजह से हुआ हे और कुछ दिनों में ठीक हो जाएगा। अक्टूबर में हम और व्यस्त हो गए और डॉक्टर के पास जाने का कोई समय नहीं निकाल पाये। नवम्बर में जब कुछ फुर्सत मिली तो उमरिया गए। Kay का सोच था की शायद उसे मलेरिया हे क्यों की हल्का हल्का बुखार हमेशा रहता था। डॉक्टर के पास जाने से पहले हमने मलेरिया का टेस्ट करवाया जो की नेगेटिव निकला। सोचा की चलो फ़िर भी डॉक्टर से मिल कर पूंछते हे की आख़िर बिमारी क्या हे? डॉक्टर जैन ने देखा और कहा की शायद थकान की वजह से हे और आप खाना ठीक से नहीं खाती हैं। हम उनकी बात मान गए। इतने में मुझे याद आया की डॉक्टर को यह भी तो बताये की मार्च मैं इनकी गर्दन पर कुछ गठाने हुई थी। इतना सुनते ही उन्होंने चेस्ट x ray की सलाह दी। एक्सरे देखने के बाद उनका कहना था की यदि कोई लोकल होता तो मैं टी बी का इलाज शुरू कर देता लेकिन फ़िर भी आप डिजीटल एक्सरे करवा कर देख ले तो साफ़ साफ़ पता चलेगा की परेशानी क्या हे।
घर आकर हमने विचार विमर्श किया और निर्णय लिया की Bhopal चल कर जांच की प्रक्रिया को आगे बढाया जावे। दो दिन बाद हम Bhopal में थे।
जांच प्रक्रिया में एक के बाद एक नए सुझाव आते रहे और हम उनके सुझावों को मानते रहे। शेर से बड़ा डर टपके का। तीन बाद अंततः यह निष्कर्ष निकला की हमें बम्बई ही जाना होगा। radiologist का मानना था की के की किडनी में जो ग्रोथ हैं वह कैंसर हो सकती हे। और इसी तरह जो फेफडे पर और शरीर के अन्य हिस्सों पर जो धब्बे दिख रहे हे वह उन्हें भी कैंसर मान रही थी लेकिन साफ़ साफ़ नहीं कह पा रही थी। उसके बॉस का मानना था की इसमे अभी कुछ कह पाना जल्दी होगी अतः आप कही और कुछ टेस्ट करवाए। Kay अपने आप में आश्वस्त थी की उसे कैंसर हैं। उसे लग रहा था की शायद यह उसे ग्लास इंडस्ट्री मैं काम करने से मिला हे।
मैं स्तब्ध था। मुझे कुछ भी नहीं सूझ रहा था की यह सब क्या हो रहा हे। मुझे लगा की जब Kay आश्वस्त हैं तो फ़िर अब आगे बढ़ना चाहिए इस लड़ाई को लड़ने के लिए। मैंने अपने एक मित्र की पत्नी जो की इंग्लैंड मैं डॉक्टर हैं को यह बात बताई। सुनते से ही उनका जवाब था की Kay को फ़ौरन यहाँ भेजो। यहाँ बेहतर सुविधाए हैं।
अब तक हम अपने लगभग समस्त मित्रों को कैंसर का बता चुके थे। हम दोनों के बीच अब संवाद भी कम हो गया था। रात को दोनों एक दूसरे के हाथ को पकड़कर लेटते और सारी रात यूँ ही जागते बीत जाती। चिंता ने हमारा सुख छीन लिया था।
एक मित्र ने सहायता का हाथ बढाया और बम्बई में कैंसर के एक मशहूर डॉक्टर से मिलवाने का इंतजाम किया। मरता क्या न करता। दूसरे दिन हवाई जहाज से बम्बई पहुंचे। मैं लगभग बीस सालों बाद बम्बई गया था। अब तो यह मेरे लिए एक नए शहर की तरह था। कौन कहता हे की बम्बई में टैक्सी वाले ठगते नहीं। एअरपोर्ट से ग्रांट रोड तक जब मीटर ने ११७९ रूपये बनाए तो मेरी लड़ने की इच्छा हुई लेकिन पत्नी की हालत देख कर सोचा छोडो डॉक्टर जब पैसे मांगेंगा तब मैं कोई आनाकानी नहीं करूंगा तो यह भी उसी का एक हिस्सा समझू।
दूसरे दिन समय से पहले ब्रीच कैंडी अस्पताल पहुंचे। सहायतार्थ मित्र की चाची भी समय पर पहुँच गई थी।
तूफ़ान से पहले की शान्ति हमारे चेहरों पर छाई हुई थी। डर ने या सच जानने से पहले की घबराहट ने हमें उस हाल से बाहर निकाला और हम दीवाल के पास आकर खड़े हो गए। दीवाल के उस पार समुद्र अठखेलियाँ खेल रहा था और इस और हम एक दूसरे का हाथ पकड़े गुमसुम खड़े थे। दोनों के पास बात करने के लिए कोई विषय नहीं था। मैं सोच रहा था अब Kay को बचाने के लिए क्या क्या जुगत करनी पड़ेगी, लेकिन कुछ भी नही सूझ रहा था।
नियत समय पर डॉक्टर आ गए। उनके हाल में आते ही एक सन्नाटा छा गया। एक जूनियर डॉक्टर ने आकर Kay के सारे कागज़ रिपोर्ट देखे और Kay को साथ आने को कहा। मैं भी पीछे पीछे हो लिया। Kay के अन्दर जाने के बाद मुझसे मेरी कफ़ियत पूंछी गई।
25-30 मिनट बाद जब Kay आई तो डॉक्टर से मेरा परिचय करवाया गया। अचानक उनके मुंह से निकला की अरे मैंने तो सब कुछ इन्हे बता दिया। आपने बिल्कुल सही किया। मर्ज के बारे में मरीज को सारी जानकारी होनी चाहिए, मैंने कहा। लेकिन उनका तो चेहरा सफ़ेद पड़ गया था। हमारे देश में मर्ज के बारे में मरीज को नहीं बताते वल्कि उसे भरोसा दिलाते हैं की चिंता मत करो हम तुम्हे मरने नहीं देंगे। डॉक्टर पर भरोसा रखो और हम सब तुम्हे बचाने के लिए जी जान लगा देंगे। यह बात और है की बाद में इलाज से ज्यादा खर्च तेरहवीं में हो जाए।
मैंने देखा है की इलाज के लिए भाइयों में पैसा लगाने पर अनबन रही लेकिन तेरहवीं के लिए जमीन बेंचने पर सब सहमत थे। यहाँ तो हालात ही बिल्कुल अलग थे। जांच के बाद Kay सीधे मेरे पास आई डबडबाती आँखों से मुझे देखा और मुझसे सटकर खड़ी हो गई। मैंने उसकी कमर में हाथ डाला और दूसरे हाथ से हाथ पकड़कर खडा हो गया। I told you i am riddled with it. It has spread everywhere. Satyendra once it is spread in to lungs it is very difficult to survive, Kay said. I asked what he says. His advice is to go home and eat and meet. He gives me three months life.
Kay के आंसू गालों से नीचे तक बह आए थे। पास और पास आने की चाहत का दबाब हम हमारे हाथ झेल रहे थे।
मुझे लगा की आज का दिन तो गया अब ८९ बचे। मुझे लड़ना ही पढेगा। मैंने सारी हिम्मत बटोरी, आंसूओं को रोका और पूंछा की अगर कैंसर इतना फ़ैल गया हे तो कोई तकलीफ तो होनी चाहिए। कोई दर्द नहीं और न ही कोई और तकलीफ। आख़िर वजह क्या हे की यह इतनी सावधानी से फैला। अब तो डॉक्टर का भी माथा ठनका। Kay को फ़िर अन्दर बुलाया और दो दो डॉक्टर उससे सवाल जवाब करने लगे। चिंता के मारे हमारा शरीर पसीने से तरबतर था तो अब उनके माथे पर पसीना उभरने लगा। एक लंबे चौडे पर्चे पर डॉक्टरो के नाम, अस्पताल और टेस्टों के नाम लिख कर हमें पकडा दिया । उनके जूनियर ने हमें आकर बताया की आप शाम को उस अस्पताल में आ जाइए और आने पर मुझे मोबाइल पर सूचना दे। डॉक्टर साब एक बार और चेक करना चाहेंगे। यह टेस्ट तो वह टेस्ट, यहाँ जा तो वहाँ जा। हर टेस्ट नेगेटिव निकल रहा था। इसी दौरान एक दिन सुबह ओमहरी ने होशंगाबाद से फ़ोन किया अरे आप कहाँ हे? बम्बई में ताज में आतंकियों ने हमला कर दिया हे। TV खोलकर देखा तो पता चला की ख़बर ८ घंटे पुरानी पड़ चुकी हे। एक टेस्ट के लिए अस्पताल जाना था फ़ोन करने पर पता चला की डॉक्टर ख़ुद पुँछ रहे थे की अगर हम वहाँ हे तो वह आयेंगे अन्यथा नहीं। वह आए थे एक मरीज को देखने और मरीजों को देखते रहे शाम के आठ बजे तक। बम्बई का लब्बो लवाब यह हे की हम जांच और बम्बई से परेशान हो चुके थे। मौत का संशय दूर होता जा रहा था। यह तो निश्चित था की यह कैंसर नहीं हे लेकिन जिस डॉक्टर ने केवल तीन महीने के जीवन का आश्वासन दिया था वह ग्लानी के और डॉक्टर के कर्तव्य के कारण यह जानने को इच्छुक थे की आख़िर यह बिमारी क्या हे। Lungs की biopsi का नतीजा जब नेगेटिव आया तो वह बड़े आसानी से मान गए और कहने लगे की Possibly she missed the nodules. Let us do another biopsi.
इसका नतीजा भी जब नेगेटिव आया तो उन्होंने डॉक्टर से ख़ुद बात की की nodule मिस तो नहीं कर दिया था। दोनों अपनी अपनी बात पर डटे रहे और नतीजा एक और biopsi का। इस बार उन्होंने उसी अस्पताल के डॉक्टर से biopsi कराने को कहा। यह नतीजा भी जब नेगेटिव निकला तो उन्होंने तो फ़ौरन फ़ोन पर ही सारी पूंछतांछ कर डाली। Nodule कितना बढ़ा था यहाँ से क्यों लिया वहाँ से क्यों नही। लेकिन मजे की बात यह की दूसरा डॉक्टर भी अपने कार्य के प्रति उतना ही आश्वस्त सो दोनों ने एक दूसरे की बात मान ली। १२ दिन बाद इस बात पर सब सहमत हुए की यह कैंसर नहीं हे। अब फ़िर यह हे क्या, एक बड़ी समस्या बन चुका था।
डॉक्टर ने अब कहा की आपको किसी बेहतर जीपी को दिखाना चाहिए। इसी अस्पताल में एक बहुत बढिया जीपी हे उससे चर्चा कर लो। डूबते को तिनके का सहारा। हमने फ़ौरन हाँ कर दी। दूसरे ही मिनट हम उनके दरवाजे के बाहर खड़े थे। अन्दर से एक सहायक ने आकर बताया की थोडा इन्तजार करे, आपको अभी बुलाते हे। सुनकर जान में जान आई की चलो अब इलाज शुरू होगा। इतने दिनों में Kay का वजन लगातार घट रहा था। वजन और उसके चेहरे को देखकर चिंता बढ रही थी। अब एक और चिंता ने जन्म ले लिया की शायद यह sarcoidosis हो जिसका की इलाज केवल steoride से होता हे।
बम्बई के डॉक्टर इस बात से काफ़ी चिंतित थे की इस दवाई से होने वाले नुक्सान इससे होने वाले फायदे से ज्यादा होते हे। वहाँ किसी ने इस मर्ज का अब तक इलाज नहीं किया था। बम्बई में होने वाली प्रगति का व्योरा दिन प्रतिदिन हम इंग्लैंड और अमेरिका भेज रहे थे। इंग्लैंड से हमारे डॉक्टर मित्र ने सलाह दी की हम देल्ही में डॉक्टर मनी को दिखाए। हम भी बम्बई से ऊब चुके थे. Delhi जाने से पहले Kay कुछ दिन घर रहना चाहती थी। बम्बई में खाना एक बड़ी समस्या थी। अतः हम बापस घर की और चल दिए। ट्रेन रिज़र्वेशन के लिए मिने एक एक डिटेल लिख कर दी थी लेकिन जब लिफाफा मेरे पास आया उससे बहुत पहले पैसा उसके हाथ में पहुँच चुका था। टिकेट देखकर मेरा पारा सातवे आसमान पर था लेकिन फ़ोन पर उस काले चोंगे पर चिल्लाने के अलावा मैं कर भी क्या सकता था। कटनी तक के पैसे लेकर इटारसी तक की टिकेट भेज दी। और ऊपर से जुमला यह की चाहो तो टिकेट भेज दो वापस करवा देंगे। बम्बई से निकलने की चाह में सारी मुसीबते शिरोधार्य थी। रात ११ बजे स्टेशन पहुँच कर सुबह ५ बजे बम्बई से चले। आंटी को देखने इटारसी स्टेशन पर सारा परिवार और बच्चे मोजूद। सबको लग रहा था की शायद हम कैंसर की बात छुपाना चाहते हे इसलिए यह एक नई कहानी गढ़ रहे हे।
अगला एक सप्ताह Kay ने नेट पर sarcoidosis के नफे नुक्सान के बारे में देखने पर बिताया। यह बीमारी अमूमन इंग्लैंड और ठंडे देशो जैसे स्वीडन फिनलैंड के लोगो में अधिक पाई जाती हे। देहली पहुँचने पर जांच का एक नया दौर शुरू हुआ। पहले दिन ही उन्होंने इलाज शुरू कर दिया। टी बी के साथ साथ sarcoidosis का इलाज भी शुरू किया। जिस बात के लिए बम्बई के डॉक्टर डर रहे थे यहाँ वह सब बड़ा सामान्य सा प्रतीत हो रहा था। डॉक्टर मणि का कहना था की में यहाँ sarcoidosis का रोज एक नया केस देखता हूँ । यह सुन हमारी जान में जान आई। दो महीने बाद पता चला की इन्हे टी बी नहीं हे तब टी बी की दवा बंद की गई। देहली से आने के बाद हम एक और चिंता मैं डूब गए थे की यदि टी बी हे तो मुनमुन और माहि का भी तो चेकअप करवाना पडेगा। मेरा एक टेस्ट नेगेटिव आया तो मुझसे कहा की कोई जरूरी नहीं की तुम्हे टी बी हो हाँ बच्चो को हो सकती हे। नवम्बर के बाद अगले तीन महीनो तक हमारा पड़ाव देहली में रहा। फरवरी के बाद पिछले हफ्ते जब डॉक्टर से मिले तो फ़िर कुछ जांच करने के बाद संतुष्ट होकर कहा की अब कम से कम तीन महीने के लिए दबाई बंद करो। नवम्बर में देखेंगे की क्या होता हे। इन जांचो के आधार पर अब तुम्हे कोई बीमारी नहीं हे।
अब हमारी खुशी सातवे आसमान पर थी।इंग्लैंड जाकर अब उसे कोई दवाई नही खानी पड़ेगी इसकी उसे सबसे ज्यादा खुशी थी।

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