Tuesday, August 18, 2009

नदी के उस पार खड़ी लड़की

यह क्या किस्सा हे यह तो आज की तारीख में कहना बड़ा मुश्किल हे लेकिन उस समय जो हमारी मित्र मण्डली थी उसमे इस तरह के व्यक्ति का आना हम लोगो के लिए बड़ा ही अपमानजनक लगता था लेकिन हम लोग भी मजबूर the. उस समय उसके अस्तित्व को नकारने की हिम्मत हम लोगो में नहीं थी। क्यों नहीं थी यह मेरे समझ में आज भी नही आता हे जबकि उस मित्र मंडली में ऐसे लोग थे जिनसे की लोग खरा खरा सुनने में घबराते थे।
खेर मैं किस्सा शुरू करता हूँ।
आज से ठीक २७ साल पहले मैं इसी बांधवगढ़ की एक होटल में मेनेजर के पद पर काम करता था। मेरे साथ में मेरे मित्र मरहूम डॉक्टर जुल्फिकार मोहम्मद खान स्वागतकर्ता के रूप में काम करते थे। उस मंडली में श्री दुष्यंत, होटल मेनेजर, स्वर्गीय श्री आशुतोष दुबे ranger और एक और ranger जो की उस समय नए नए आए थे भी थे। यही सज्जन हम लोगो की नाक में दम करे रहते थे। कोई न कोई व्यक्ति इनकी शिकायत लेकर हम में से किसी एक के पास रोज पहुँच जाता।
यह सज्जन लड़कियों के दीवाने थे और उनकी वजह से हम लोगो को बड़ी असहजता महसूस होती। एक शाम को डॉक्टर ने मुझसे कहा की साहब आज में जो कुछ कहूँ आप बस उसमे हां करते रहना। डॉक्टर की खुराफात समझना कोई आसान काम नहीं था मैंने चुपचाप अपनी सहमती दे दी।
शाम को अलाव पर मैं, डॉक्टर, दुष्यंत और आशुतोष दुबे बैठे हुए थे। थोडी देर में देखते क्या हे की महाशय सूट बूट टाई लगाए चले आ रहे हे। पास में बैठे तो पता चला की महाशय सेन्ट भी लगाए हुए हैं।
कुछ समय बाद डॉक्टर ने कहा की साहब पम्प की ग्लेन डोरी बदलना हे। शाम को भूल गया। अभी बदले देता हूँ वरना सुबह पानी की मुसीबत हो जायेगी। उस नौकरी में उस समय यह सारे काम मेनेजर को या स्वागतकर्ता को करने पड़ते थे।
कोई १५-२० मिनट बाद डॉक्टर वापस आये। पतलून मिटटी में सनी हुई और पेशानी पर बल। महाशय ने फ़ौरन पूंछा बदल दी साब। अरे कहाँ यार, डॉक्टर ने कहा। सहायता के लिए फ़ौरन तय्यार महाशय ने कहा बताइये मैं बदले देता हूँ। चलो तो फ़िर आप भी अपनी पतलून गन्दी कर लो। और वह डॉक्टर के साथ चल दिए।
थोडी देर बाद डॉक्टर उन्हें काम सोंपकर वापस अलाव पर आ गए। हम चारो अपनी बातो में मशगूल हो गए। ठीक ठीक तो याद नहीं की क्या खाया था लेकिन डॉक्टर ने खाने के लिए कुछ मंगाया था और दुष्यंत ने कहा था यार महाशय को तो आ जाने दो। डॉक्टर का जवाब था अरे साब शुरू करो उसको तो काम पर लगा दिया हे अब वो नहीं आयेगा। हम सब जानते थे की डॉक्टर से सर लड़ाने में कुछ नहीं मिलेगा इसलिए हम लोग खाने लगे। कोई ३० मिनट बाद मोहन चाय लेकर आया। चाय रखकर मुस्कराते हुए डॉक्टर से बोला साब आज फंस जाते, वो तो रेत थी इसलिए मैं बच गया। कहाँ वो नदी के उस पार से घूम के वापस आया में।
मोहन के जाने के बाद हमने डॉक्टर से पूंछा डॉक्टर माजरा क्या हे।
अरे साब परेशान हो गया था इसकी शिकायते सुनसुन कर तो सोचा की आज इसको अच्छे से निपटा दूँ। दोपहर में मैंने रामजी को इसके पास भेजा की जा कर बता दे की डॉक्टर साब ने कहा हे शाम को अच्छे कपड़े पहन इतर लगा कर आये। जब में इसको लेकर गया था तो पम्प के पास से नदी के उस पार खड़ी लड़की दिखा दी थी।
देख कर कहने लगा साब कैसे जाऊंगा। अबे आदमी हे की तमाशा। यहाँ से इस टीले पर कूद और दूसरी छलाँग में उस पार। साब जो उसने छलाँग लगाई तो महाशय घुटने घुटने पानी में। नए जूते नया सूट सब पानी में तर बत्तर मगर फ़िर भी पट्ठा छप छप करते उस पार। उधर जाकर उसने इसके कंधे पर हाथ रखा और चेहरे पर से साडी हटाने की कोशिश की तो मैंने आवाज सुनी - नहीं और फ़िर में आप लोगो के पास चला आया। बाकि किस्सा आपको मोहन ने बतला ही दिया हे। बहरहाल उस रात महाशय वापस अलाव पर नहीं आये। और दूसरे दिन डॉक्टर से बड़े गिले शिकवे किए।
वह भी मस्तियों के दिन थे।

No comments: